’’अछूत जातियां और स्वराज” ~ सर छोटूराम का यह लेख जाट गजट (Jat Gazette) में 3 अगस्त 1921, पृ. 4, पर छपा था

सर छोटूराम (Sir Chhoturam) का यह लेख जाट गजट (Jat Gazette) में 3 अगस्त 1921, पृ. 4, पर छपा था: हमें महात्मा गांधी के कुछ राजनीतिक सोच, नियम और कामों से बड़ा मतभेद रहा है, मगर महात्मा जी की जो सोच अछूत जातियों के प्रति है, उनके साथ हमेशा पूरी सहमति रही है। स्वराज की प्राप्ति के लिए महात्मा गांधी की एक नई शर्त यह है कि जब तक हम अछूत जातियों को इस अपमान भरी जिन्दगी से बाहर न निकालेंगे, जिसके अन्दर हमारे पिछले बर्ताव ने उन्हें धकेल दिया है, हम भारतवर्ष के लिए स्वराज प्राप्त नहीं कर सकते, जब तक हम अपने 6 करोड़ भाइयों को आजादी देने के लिए तैयार नहीं करते, हम खुद भी आजादी हासिल करने के हकदार नहीं है, महात्मा जी की इस सोच पर हमें पूरी सहमति है।
छुआ-छूत की दलदल पर सख्त टिप्पणी
हम नहीं कह सकते कि हिन्दू धर्म के अन्दर अछूत जातियों के विरुद्ध घृणा और उनका अपमान करने का ख्याल कब और कैसे प्रवेश किया, लेकिन इस बात को देखकर दिल पर बहुत चोट लगती है कि इस धर्म के मानने वाले जो च्यूँटी, कुत्ते, हाथी, गऊ और चण्डाल को एक जैसा ब्रह्म का स्वरूप बतलाते हैं, मनुष्य जाति के एक भाग से इतनी घृणा करें कि उनके छूने से कपड़ों का नापाक होना समझा जाए और उसके साये से दूसरों का धर्म भ्रष्ट होना समझा जाए। इससे ज्यादा मनुष्य, मनुष्य का अपमान नहीं कर सकता कि वह अपने जैसे दूसरे लोगों के साये को नापाक और नापाकी पैदा करने वाला समझे एक आदमी का एक आदमी के हाथों इससे ज्यादा अपमान नहीं हो सकता कि वह अपने किसी दूसरे जाति के लोगों के छूने को नापाकी का कारण समझे। जिन जातियों को हम अछूत कहते हैं वह उसी ईश्वर की पैदा की हुई है, जिसने हमें पैदा किया है, जिन जातियों के साये को हम नापाक समझते हैं वह उसी परम पिता परमेश्वर के बच्चे हैं, जिसके बच्चे हम हैं, जिन जातियों को हम अछूत के नाम से पुकारते हैं, उनके आदमियों के अन्दर वही आत्मा है जो हमारे अन्दर है। उनके वैसे ही हाथ, पांव, नाक, आंख है जैसे हमारे हैं। उनकी वही बुद्धि और इन्द्रियां हैं जो हमारे अन्दर है, उनको उन्हीं चीजों से सुख और दुःख होता है, जिनसे हमको सुख और दुःख होता है। वही उनका दिल है और वैसे ही उनकी भावनाएं हैं जो हमारी है। फिर हम उनके साथ जो बर्ताव करते हैं, वह उस बर्ताव से भी बुरा है जो हम जानवरों के साथ करते हैं। उनका साया नापाक, उनका स्पर्श नापाक, हम उनको कुएं पर नहीं चढ़ने . देते। हम उनको जोहड़ में घुसने नहीं देते, उनको मन्दिर में जाने की अनुमति नहीं, उनको हमारे स्कूलों में प्रवेश की अनुमति नहीं। उनको वेदों को पढ़ने की अनुमति नहीं। उनको वेदों को सुनने की अनुमति नहीं, उनको गायत्री मंत्र जपने का अधिकार नहीं। उनको शास्त्रों के पठन-पाठन का अधिकार नहीं। दुनियावी शिक्षा का दरवाजा बन्द । ईश्वरी ज्ञान के खजानों पर मुहर ऐसा अत्याचार आज तक दुनिया के किसी देश में और इतिहास के किसी जमाने में सुनने में नहीं आया, जो हिन्दुओं की तरफ से अछूत जातियों पर हो रहा है, हमने सामाजिक गुलामी, मानसिक गुलामी और आत्मा की गुलामी की बेड़ियां अछूत जातियों के गले में पहना रखी है। अछूत हिन्दू बेचारे गुलाम पैदा होते हैं।
अछूत लोगों पर अत्याचार से स्वराज्य प्राप्ति नहीं
गुलामी की जिन्दगी गुजारते हैं और गुलाम ही मर जाते हैं, जो कौम पचीस तीस फीसदी अपने धार्मिक भाइयों पर ऐसा अत्याचार जायज रख सकती है वह कौम आजाद नहीं हो सकती और न वह कौम आजादी की हकदार है। इसलिए महात्मा गांधी ने कहा है कि जब तक हम अपने अछूत भाइयों को आजादी देने के लिए तैयार नहीं, जब तक अछूत का दाग हिन्दू समाज पर लगा हुआ है, तब तक भारतवर्ष को स्वराज प्राप्त नहीं हो सकता और न भारतवर्ष स्वराज का हकदार है। महात्मा गांधी ने यह भी सही कहा है कि हिन्दू धर्म ऐसे अत्याचार की अनुमति नहीं दे सकता और जो लोग हिन्दू धर्म के नाम से इस अत्याचार को जारी रखते हैं और जायज समझते हैं वह हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करते हैं और अपनी करनी से हिन्दू धर्म पर बट्टा लगाते हैं और अगर वास्तव में हिन्दू धर्म ऐसे अत्याचार की अनुमति देता है तो मैं अपने आप को ऐसे धर्म का पाबन्द नहीं समझता।
अगर हम अपने भाइयों को वह अधिकार देने के लिए तैयार नहीं जो हरेक आदमी दूसरे आदमी से केवल इन्सानियत के आधार पर मांग सकता है तो हम खुद स्वराज के लायक नहीं। अगर हम अपने भाइयों को वह आजादी देने के लिए तैयार नहीं जो हमने गलत तरीके से उनसे छीन रखी है तो हम स्वराज के हकदार नहीं। अगर हम खुद अपने समाज के अन्दर बराबरी का व्यवहार करने के लिए तैयार नहीं तो हम अंग्रेजों से बराबरी के व्यवहार की आशा नहीं कर सकते। हिन्दुस्तान उस समय तक आजाद नहीं हो सकता जब तक हम अपने अछूत भाइयों के गले से गुलामी की बेड़ियां नहीं उतारते। जब हिन्दुओं ने हिन्दुओं पर अत्याचार किया। जब हिन्दुओं ने हिन्दुओं को गुलाम ठहराया। जब हिन्दुओं ने अपने धर्म के लोगों को अछूत और नीच कहकर आजादी की देवी का अपमान किया तो पूरे हिन्दुओं की आजादी छिन गई और एक ऐसे धर्म के मानने वालों का राज आया, जिसमें भाईचारे की आत्मा कूट-कूट का भरी हुई है और बराबरी का मामला भी बहुत अच्छा है। जब वह भी हिन्दुओं के गुनाह से सराबोर हो गए तो दोनों की आजादी जाती रही और हमें पूरा विश्वास है कि हमारे पुराने पाप हमारी आजादी के रास्ते में कांटे बो रहे हैं और जब तक हम अपने दामन को इस पाप से पाक नहीं करेंगे, हमें अंग्रेजों से बराबरी का व्यवहार या स्वराज नहीं मिल सकता।
(Sir ChhotuRam : Writing & Speeches (जाट गजट), Vol – IV, page 340)
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