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जाट गजट – Jat Gazette एक साप्ताहिक समाचार पत्र व एक डिजिटल न्यूज़ चैनल है, यह  1916 में रोहतक में शुरू किया गया था। यह जमींदार लीग का एक अंग था और इसे यूनियनिस्ट पार्टी का संरक्षण प्राप्त था। रोहतक जिले में इसका प्रचलन सबसे अधिक है। कुछ समय तक यह पत्र ग्रामीणों को निःशुल्क भेजा जाता था। अखबार ने ग्रामीण आबादी, विशेष रूप से किसानों के कारणों का समर्थन किया। २०१४ से जाट गजट – Jat Gazette की डिजिटल मीडिया के रूप में भी शुरुआत कर दी गई।

सन् 1916 में  ‘जाट गजट ’ – स्कूलों के अतिरिक्त चौ० छोटूराम ने अखबार तथा लेखों के माध्यम से किसानों में जागृति लाने का काम भी किया। इस उद्देश्य से ‘जाट गजट’ नामक समाचार-पत्र निकाला गया। खर्च के लिए 1500 रुपये गांव मातनहेल के रायबहादुर चौधरी कन्हैयालाल ने पहले प्रकाशन के लिए दिए और ‘जाट गजट’ साप्ताहिक चल पड़ा।

जाट गजट (Jat Gazette) के पहले सम्पादक पं० सुदर्शन जी, दूसरे पं० श्रीराम शर्मा के पिता पं० बिशम्भरनाथ शर्मा झज्जर वाले, तीसरे चौ० मोलड़सिंह जो बहुत जोशीले हुए थे। सन् 1924 में चौ० शादीराम यात्री सम्पादक बने और फिर चौ० छोटूराम दलाल गांव छाहरा और 1971 ई० से धर्मसिंह सांपलवाल एडवोकेट सम्पादक हैं।

चौ० छोटूराम ने भ्रष्ट सरकारी अफसरों और सूदखोर महाजनों के शोषण के विपरीत अनेक लेख लिखे। ‘ठग्गी के बाजार की सैर’, ‘बेचारा जमींदार’, ‘जाट नौजवानों के लिए जिन्दगी के नुस्खे’ और ‘पाकिस्तान’ आदि लेखों द्वारा किसानों में राजनैतिक चेतना, स्वाभिमानी भावना तथा देशभक्ति की भावना पैदा करने का प्रयास किया। इन लेखों द्वारा किसान को धूल से उठाकर उनकी शान बढ़ाई। महाजन और साहूकार ही नहीं, अंग्रेज अफसरों के विरुद्ध भी चौ० छोटूराम जनता में राष्ट्रीय चेतना जगाते थे। अंग्रेजों द्वारा बेगार लेने और किसानों की गाड़ियां मांगने की प्रवृत्ति के विरोध में आपने जनमत तैयार किया था। गुड़गांव जिले के अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर कर्नल इलियस्टर मोरों का शिकार करते थे। लोगों ने उसे रोकना चाहा परन्तु ‘साहब’ ने परवाह नहीं की। जब उनकी शिकायत चौ० छोटूराम तक पहुंची तो आपने जाट गजट में जोरदार लेख छापे जिनमें अन्धे, बहरे, निर्दयी अंग्रेज के खिलाफ लोगों का क्रोध व्यक्त किया गया। मिस्टर इलियस्टर ने कमिश्नर और गवर्नर से शिकायत की। जब ऊपर से माफी मांगने का दबाव पड़ा तो चौ० छोटूराम ने झुकने से इन्कार कर दिया। अपने चारों ओर आतंक, रोष, असन्तोष और विद्रोह उठता देख दोषी डी.सी. घबरा उठा और प्रायश्चित के साथ वक्तव्य दिया कि वह इस बात से अनभिज्ञ था कि “हिन्दू मोर-हत्या को पाप मानते हैं”। अन्त में अंग्रेज अधिकारी द्वारा खेद व्यक्त करने तथा भविष्य में मोर का शिकार न करने के आश्वासन पर ही चौ० छोटूराम शांत हुए।

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